हूँ पन में केंद्रित होना…

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बुद्ध एक गांव से गुजर रहे हैं। कुछ लोग बहुत क्रोध में हैं-उनकी शिक्षाओं के बहुत विरुद्ध हैं। वे उनको गालियां देते हैं, वे उनका अपमान करते हैं। बुद्ध चुपचाप सुनते हैं और कहते हैं-यदि आपकी बात पूरी हो गई हो, तो मुझे जाने दें। मुझे दूसरे गांव पहुंचना है, और वहां के लोग मेरी प्रतीक्षा करते होंगे। यदि अभी भी कुछ बात आपके मन में रह गई हो, तो जब मैं इस रास्ते से वापस लौटूंगा, तब पूरी कर लीजिएगा।
वे लोग कहने लगे-हमने आपको गालियां दी हैं, अपमान किया है। क्या आप उत्तर नहीं देंगे? बुद्ध कहते हैं-जो कुछ भी आप करते हैं, वह आप तक है। अब मैं प्रतिक्रिया नहीं करता। आप मुझे कुछ भी करने के लिए बाध्य नहीं कर सकते। आप मुझे गालियां दे सकते हैं, यह आपके तक सीमित है। मैं दास नहीं हूं। मैं एक मुक्त आदमी हूं। मैं अपने केंद्र पर से क्रिया करता हूं, न कि परिधि से। और आपकी गालियां केवल परिधि को ही स्पर्श कर सकती हैं, न कि मेरे केंद्रों को। मेरा केंद्र अनछुआ ही रहता है।
आप इतने अधिक प्रभावित हैं-इसलिए नहीं कि आपका केंद्र इतना प्रभावित है, बल्कि इसलिए कि आपका कोई केंद्र ही नहीं है। आप तो मात्र एक परिधि हैं, परिधि से तादात्म्य न जोड़ें। परिधि तो प्रत्येक उस बात से जो होती है, उससे प्रभावित, स्पर्शित होगी ही। वही तो आपकी सीमा है, इसलिए जो भी घटित होगा, वह उसे स्पर्श करेगा ही। क्योंकि आपका कोई केंद्र नहीं है।
जिस क्षण भी आपके पास केंद्र होगा, आप अपनी परिधि से स्वयं दूर हो जाएंगे। आपकी अपनी परिधि से एक दूरी होगी। कोई उस परिधि को गाली दे सकता है, न कि आप को। आप अलग ही छूट जाते हैं-अनजुड़े आप में और आपके स्वरूप में एक दूरी है; आप जो एक परिधि की तरह हैं और आपकी सत्ता जो एक केंद्र की तरह है-इन दोनों में एक दूरी है, और इस दूरी को कोई भी नहीं मिटा सकता क्योंकि कोई भी केंद्र तय प्रवेश नहीं कर सकता। बाहरी संसार केवल आपको एक परिधि की तरह ही स्पर्श कर सकता है। इसलिए बुद्ध कहते हैं-अब मैं अपने केंद्र पर हूं। दस वर्ष पहले बात भिन्न थी। यदि तुमने मुझे गालियां दी होती, तो मैं प्रतिक्रिया करता।


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