विधि को छोड़ने के विषय में तुम्हें बहुत अधिक सजग रहने की आवश्यकता है। जिस क्षण तुम पहुंच जाओ, जिस क्षण तुममें होश जग जाए, तत्क्षण विधि को छोड़ दो, अन्यथा तुम्हारा मन विधि को पकड़ने लगेगा। यह बात तुम्हें बहुत तर्कयुक्त लगेगी, तुम कहोगे, “यह विधि ही है जो अधिक महत्वपूर्ण है।”
बुद्ध एक कहानी बार-बार कहते थे। पांच मूढ़ एक गांव से गुजरे। उन्हें देख कर सभी चकित थे, क्योंकि वे अपने सिर पर एक नाव ढो रहे थे। नाव वास्तव में बड़ी थी; उसके बोझ के नीचे वे मरे जा रहे थे। लोगों ने पूछा : “तुम कर क्या रहे हो?”
वे बोले : “इस नाव को हम नहीं छोड़ सकते। इसी नाव ने हमें उस किनारे से इस किनारे आने में मदद दी है। इसे हम कैसे छोड़ सकते हैं? इसी के कारण तो हम यहां पहुंच पाए हैं। इसके बिना तो हम दूसरे किनारे पर ही मर गए होते। रात होने को थी, और उस किनारे पर जंगली पशु थे; यह बिलकुल निश्चित ही था कि सुबह तक हम मर गए होते। इस नाव को हम कभी न छोड़ेंगे। इसके हम सदा-सदा के लिए ऋणी हैं। हम तो अहोभाव के रूप में इसे अपने सिर पर ही ढोएंगे।”
यह घट सकता है क्योंकि मनुष्य का मन मूढ़ है। मन जैसा है, मूढ़तापूर्ण है।
मेरा मानना है : नाव का उपयोग करो, सुंदर नावों का उपयोग करो, जितनी संभव हो सके उतनी नावों का उपयोग करो, इस होश के साथ कि जब किनारा आ जाए, बिना किसी पकड़ के नाव को छोड़ दो। जब तुम नाव में हो, उसका आनंद लो, उसके प्रति अनुग्रह का भाव रहे। जब नाव से बाहर आओ, उसे धन्यवाद दो और आगे बढ़ जाओ।
तुम उपाय को छोड़ दो तो स्वतः ही अपने स्वरूप में ठहरने लगोगे। मन पकड़ता है; वह तुम्हें अपने स्वरूप में ठहरने नहीं देता, वह तुम्हें ऐसी चीजों में आकर्षित रखता है जो तुम नहीं हो : जैसे नाव।
जब तुम कुछ भी नहीं पकड़ते तो कहीं जाने को नहीं रहता; सभी नावें छूट गईं, तुम कहीं नहीं जा सकते; सभी मार्ग छूट गए और तुम कहीं जा नहीं सकते; सभी स्वप्न और कामनाएं मिट गईं, अब आगे जाने का उपाय न रहा। फिर विश्राम स्वतः ही घटता है। जरा ‘विश्राम’ शब्द पर विचार करो। बस होओ… ठहर जाओ… तुम घर आ गए।
osho
ध्यान की विधि से जब ‘हूं’ की झलक मिलने लगे तो विधि से अवधान को हटाकर ‘हूं’ पर अवधान को टिकाना है और विधि से मुक्त हो जाना है।
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